कब से शुरू हुआ था रक्षाबंधन का पर्व, राक्षस और देवताओं से जुड़ी है यह पौराणिक कथा

 

रिपोर्ट- अथर्व

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देशभर में भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन (Rakshabandhan) मनाया जा रहा है. हर्षाली त्यौहार मनाया जाता है लेकिन यह त्यौहार कब शुरू हुआ था यह आज हम आपको बता रहे हैं. इससे एक पौराणिक कथा जुड़ी है.

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रक्षाबंधन की कथा धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्री कृष्ण ने रक्षाबंधन की कथा सुनाई थी.

उन्होंने बताया कि एक बार राक्षसों और देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया. करीब 12 वर्षों तक यह युद्ध चलता रहा. कोई भी कम नहीं पड़ रहा था. एक दूसरे को देवता और राक्षस टक्कर दे रहे थे. एक समय ऐसा भी आया जब असुरों ने देवराज इंद्र को भी पराजित कर दिया था.

पराजित होने के बाद देवराज इंद्र अपने देवगणों को लेकर अमरावती नामक स्थान पर चले गए. इंद्र के जाते ही दैत्यराज ने तीनों लोकों पर अपना राज स्थापित कर लिया. इसके साथ ही राक्षसराज ने यह मुनादी करा दी की कोई भी देवता उसके राज्य में प्रवेश न करे और कोई भी व्यक्ति धर्म-कर्म के कार्यों में हिस्सा न ले. अब से सिर्फ राक्षस राज की ही पूजा होगी. राक्षस की इस आज्ञा के बाद धार्मिक कार्यों पर पूरी तरह से रोक लग गई. धर्म की हानि होने से देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी.

तब देवराज इंद्र देवगुरु वृहस्पति की शरण ली और इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा. तब देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र को रक्षा सूत्र का विधान करने के लिए कहा. इसके लिए उन्होंने कहा कि रक्षा सूत्र का विधान पंचांग के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शुभ मुहूर्त में ही किया जाना चाहिए. रक्षा सूत्र बांधते समय इस मंत्र का पाठ करना चाहिए. उनके इस श्लोक का उल्लेख पुराणों में मिलता है-

येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चल:।

देवगुरु बृहस्पति के कहे अनुसार, इंद्राणी ने सावन मास की श्रावणी पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त पर इंद्र की दाहिनी कलाई पर विधि- विधान से रक्षा सूत्र बांधा और युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया. रक्षा सूत्र यानि रक्षाबंधन के प्रभाव से राक्षस पराजित हुए और देवराज इंद्र को पुन: खोया हुआ राज्य और सम्मान प्राप्त हुआ. मान्यता है कि इस दिन से रक्षाबंधन की परंपरा का आरंभ हुआ जिसे आज भी देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

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