सियासी चर्चा-इतना लम्बा राजनीतिक सफर तय करने के बाद आखिर क्यों नहीं लड़ना चाहते चुनाव त्रिवेन्द्र ?

देहरादून/ एच टी ब्रेकिंग – जहां एक तरफचुनाव से पहले टिकट पाने के लिए मारामारी है, कई सिटिंग विधायकों का टिकट कटने का डर है और कई लोग टिकट पाकर चुनावी मैदान में उतरने के लिए बेताब हैं तो वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत(Trivender Singh Rawat) चुनाव लड़ना नहीं चाहते हैं उन्होंने भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को खत लिखकर इस बार चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर की और संगठन के लिए काम करने की बात की।वहीं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस खत के बाद उत्तराखंड की सियासत गर्माती नजर आ रही है । विपक्ष सवाल खड़े कर रहा है कि आखिर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इतने अनुभवी होकर चुनाव लड़ना क्यों नहीं चाहते हैं? चुनाव की तारीखों का ऐलान जब से हुआ है तब से तमाम पार्टियों के नेताओं के दिल की धड़कन तेज हो गई है। पार्टियों में जीत हासिल करने की तो होड़ लगी थी लेकिन अब पार्टियों के अंदर ही नेताओं के टिकट पाने की रेस में सभी आगे निकलना चाहते हैं। जहां एक तरफ युवा नेता से लेकर अनुभवी नेताओं तक सभी अपने और अपने परिजनों के लिए दावेदारी करते नजर आ रहे हैं इसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर चुनाव न लड़ने की इच्छा जताई है। इस विपक्ष की तमाम पार्टियां भाजपा पर हमला कर रही है। कांग्रेस ने तो अपने टि्वटर हैंडल अकाउंट पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए उत्तराखंड की जनता का खुला पत्र के नाम से ट्वीट कर त्रिवेंद्र पर जमकर निशाना साधा है। इस पत्र में कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल की जमकर आलोचना की।साल 2017 में भाजपा की जीत के बाद डोईवाला सीट से जीत दर्ज करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री के ताज से नवाजा गया, लेकिन 4 साल बाद उन्हें सीएम पद से हटाया गया।

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पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लम्बा राजनीतिक सफर तय किया है

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1979 में रावत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे

इसके बाद 1981 में संघ प्रचारक के बताओ और उन्होंने काम करना शुरू किया

1985 में त्रिवेंद्र देहरादून महानगर के प्रचारक बने

1997 में उन्हें भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी मिली

साल 2002 में फिर एक बार त्रिवेन्द्र भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री बनाये गए।

2002 के विधानसभा चुनाव में त्रिवेंद्र डोईवाला सीट से लड़े और जीते

2007 में भी डोईवाला से चुनाव जीतकर त्रिवेंद्र विधायक के साथ-साथ भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री बने

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत में आई भाजपा सरकार ने त्रिवेंद्र को सूबे की कमान सौंपी

10 मार्च 2021 को त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम पद से हटाया गया

इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत संघ प्रचारक, राष्ट्रीय सचिव झारखंड प्रभारी ,उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में सह प्रभारी जैसे पदों पर अहम भूमिका निभा चुके हैं। बेशक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कई क्षेत्रों में काम किया लेकिन उनके द्वारा लिए गए कुछ फैसले भाजपा के लिए सिरदर्द बन गए।

गैरसैंण को कमिश्नरेट बनाए जाने की घोषणा से लोगों में नाराजगी पैदा हुई

देवस्थानम बोर्ड बनाने के फैसले से देशभर के तीर्थ पुरोहित आंदोलनरत हो गए जिसके बाद नहा भी सरकार को देवस्थानम बोर्ड भंग करना पड़ा

इसके अलावा कई बार पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत विवादों से घिरे रहकर सुर्खियों में बने रहे

कई नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ शिकायती पत्र राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेजें

बरहाल, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से हटाने की वजह कुछ भी रही हो, लेकिन सियासत का लंबा सफर तय करने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए चुनाव ना लड़ने की वजह यह भी मानी जा रही है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उनसे काफी अनुभव में कम है और हो सकता है कि वह उनके नेतृत्व में कामना करके संगठन के लिए काम करना चाहते हो। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के इंकार से डोईवाला में नए समीकरण बन सकते हैं। बताया जा रहा है कि इस डोईवाला सीट पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को रणभूमि में उतारा जा सकता है क्योंकि डोईवाला विधानसभा क्षेत्र में विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल पड़ता है वही प्रेमचंद्र की सीट को कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल को देने की चर्चा भी जोरों शोरों पर है। यह तमाम रणनीतियां तो भाजपा हाईकमान तय करेगा लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पर हमला करने वाले विपक्ष का कैसे मुहं बंद करवाया जाता है यह तो वक़्त ही बताएगा।

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