सियासी चर्चा -सुर्खियों में बने रहने वाले हरक सिंह रावत का सियासी सफर जानिए-

रिपोर्ट-हिना आज़मी

देहरादून/एच टी ब्रेकिंग डेस्क /- चुनाव से पहले कांग्रेस हो या भाजपा ,सत्ता के सिंहासन को हर हाल में पाने को बेताब राजनीति दल कोई गलती नहीं करना चाहते लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी टिकट लेने के लिए दौड़ जारी है वहीं टिकट बंटवारे को लेकर पार्टियां महाभारत के मैदान से कम नजर नहीं आ रही है। सत्ता संग्राम में बगावत की गूंज उठ रही है। जहां एक तरफ टिकट बंटवारे से पहले ही कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता को बाहर का रास्ता दिखा दिया तो उसी पैटर्न पर बीजेपी ने भी सियासत का लंबा सफर तय करने वाले हरक सिंह रावत को 6 सालो के लिए पार्टी से बाहर कर दिया। अपने बेबाक अंदाज से सुर्ख़ियों में बने रहने वाले हरक सिंह रावत का भाजपा से रिश्ता टूट गया है तो वहीं अब पुराने रिश्ते जोड़ने के लिए हरक सिंह रावत के कांग्रेस में वापसी करने की अटकलें तेज़ हो गई हैं। अब देखना यह होगा कि हरक सिंह रावत के कॉन्ग्रेस ज्वाइन करने से और कॉन्ग्रेस की कमान संभालते हुए चुनावी रण में उतरने से उत्तराखंड की राजनीति के समीकरण कैसे बनते हैं ?

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विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही सभी राजनीतिक पार्टियों में टिकट के लिए मंथन शुरू होने के साथ-साथ ही बागी नेताओं के रवैये की टेंशन भी पैदा हुई। तमाम राजनीतिक पार्टियां इस बात को अच्छे से जानती है टिकट को लेकर आंतरिक कला होना लाजमी है इसी वजह से भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। इसी बीच चुनाव से पहले कांग्रेस ने 44 साल पुराने दिग्गज नेता किशोर उपाध्याय को बाहर का रास्ता दिखाया तो कल अचानक भाजपा ने हरक सिंह रावत को भी रुखसत कर दिया।
हरक सिंह रावत अपने सियासी दांव से सबको चौंका देते हैं, अपनी बातों को मनवाने के लिए अड़े रहने वाले हरक सिंह रावत के बागी अंदाज़ को भाजपा पहले ही भांप चुकी थी। हरक सिंह रावत अपनी बात को मनवाने के लिए और दबाव बनाने के लिए बगावत पर किस हद तक उतर आते हैं इस बात का अंदाजा तभी लगाया गया था जब वह कोटद्वार मेडिकल कॉलेज को लेकर कैबिनेट के बीच से उठ कर चले गए थे। तब उनके इस प्रस्ताव पर मुहर लगाई गई थी लेकिन इस बार पार्टी उनकी रजामंदी के लिए उनकी पुत्रवधू को लैंसडाउन से टिकट देने के हक मे क़तई नहीं है। इसीलिए वह अब कॉन्ग्रेस का रुख कर रहे हैं। बगावत के लिए मशहूर हरक सिंह रावत का सियासी सफर बहुत लंबा है।

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हरक सिंह रावत का सियासी सफर-

हरक सिंह रावत का सियासी सफर

गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्र नेता से राजनीति की दुनिया में कदम रखा जिसके बाद उन्हें विश्वविद्यालय में ही प्रवक्ता के बतौर नौकरी मिली जिसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

1991 में पौड़ी से भाजपा के टिकट पर उन्होंने विधायक का चुनाव लड़ा

जिसके बाद 1991 में कल्याण सिंह सरकार में सबसे युवा मंत्री के रूप में उन्होंने मोर्चा संभाला,

साल 1993 में फिर पौड़ी सीट से निर्वाचित हुए

साल 1995 में हरक विवादों के चलते भाजपा से अलग हो गए

1997 में मायावती के नेतृत्व में वह बसपा में शामिल हुए

2002 में वह लैंसडाउन सीट से कांग्रेस के लिए चुनाव लड़कर जीते

साल 2002 में ही हरक सिंह रावत को एनडी तिवारी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया

साल 2003 में जेनी प्रकरण हुआ जिस कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा

साल 2007 में फिर से वह लैंसडाउन के विधायक बने

साल 2007 में ही कांग्रेस के नेता विपक्ष बनाए गए

2012 में उन्होंने रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और जीता

2016 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर उन्होंने भाजपा में वापसी की

2017 में भाजपा की ओर से उन्होंने कोटद्वार से चुनाव लड़ा और जीता

2017 में कोटद्वार के विधायक बनने के साथ-साथ उन्हें भाजपा सरकार में मंत्री भी बनाया गया

साल 2022 में हरक सिंह रावत भाजपा सरकार से बर्खास्त कर दिए गए

हरक सिंह रावत का सियासी सफर

कुल मिलाकर सियासत का दांव पेच जानने वाले हरक सिंह रावत का सियासी सफर बहुत लंबा रहा है। वही अब एक बार फिर वह कांग्रेस में वापसी करने जा रहे हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं कि इस बार ,नहीं आएगी कांग्रेस की सरकार,,,, अब देखना यह होगा कि हरक सिंह रावत के भाजपा से नाता तोड़कर कांग्रेस में जाने से विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के परिणाम पर क्या असर पड़ता है ?

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